VishvSadbhavana Mandir

History Of Our Guru ji

हमारे पूज्य गुरुदेव परम हंस ब्रह्मऋषि आचार्य पुष्पराज जी महाराज महान त्याग मूर्ति आध्यात्मिक बाल ब्रह्मचारी योगी संत थे। गुरूदेव महान ज्योतिषाचार्य, हस्तरेखा,आयुर्वेदाचार्य योगी संत थे। उनके जीवन का उद्देश्य मानव समाज की सेवा व कल्याण करना था। उनका जन्म १७ अप्रैल १९२९ रामनवमी पुण्य नक्षत्र में माता फुला देवी पिता श्री आसकरण जी के घर में गंगा शहर बीकानेर राजस्थान में हुआ था। ९ वर्ष की आयु में " त्याग एवं ही सर्वेषा मुक्ति साधना मुक्तमम " सभी के लिए त्याग ही मुक्ति का प्राप्ति का उत्तम साधन है।

इसी से ही प्रेरणा लेकर गुरुदेव के मन में त्याग की भावना जाग्रित हुई तो उन्होंने परम श्रद्धेय आचार्य श्री तुलसी गणी जी के श्री सानिध्य में अणुव्रत संघ में जुड़ गए। वि. स. २००० में आचार्य श्री तुलसी जी से " भगवती जैन दीक्षा " ग्रहण की। आचार्य श्री जी के सानिध्य में " मुनि पुष्प " के रूप में अणुव्रत संघ में अनेक राज्यों राजस्थान , पंजाब , महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों में ५०००० कि.मी. पद यात्रा की। आचार्य श्री जी ने चरित्रवान, अनुशासन , उत्तम प्रबंधक ,ज्ञानवान संघ का प्रचार-प्रसार बढ़ाया जिससे आचार्य श्री जी ने संघ में " अग्र गण" उसके बाद " सिंघाडपति "(समूह का नेता) बनाया। अणुव्रत का संदेश लेकर गांव -गांव , शहर- शहर में " अहिंसा परमो धर्मो " का प्रचार-प्रसार किया।


" जहाँ सूई ससूता पडिभा बिन विणरसूई, तंहा जीवे सुसते संसारे बिन विणरसूई " जिस प्रकार धागे में पिराई सुई गिर जाने पर गुम नहीं होती है। उसी प्रकार ज्ञान युक्त आत्मा गुम नहीं होती बल्कि संसार का कल्याण कार्य करती है। हमारे गुरुदेव ने ज्ञान ,प्रवचन ,भजनो, द्वारा मद्यनिषदे ,मांस मंदिरा जैसी बुराइयों के बारे में लोगो को अवगत कराकर छुड़ा दिया।

१. नशा मुक्ति सप्ताह में ३१००० व्यक्तियों ने शपथ लेकर मांस मंदिरा छोड़ा था।
२. हजारो बच्चो का नवजीवन निर्माण सप्ताह मनाया।
३. महाराष्ट्र सरकार ने धार्मिक गुट बनाया तथा वहां के स्कूलों मे उनके प्रवचनो को बताने का प्रबंध किया। गुरुदेव ने अपने ज्ञान के प्रकाश से संसार का कल्याण किया।

संघ में घोर तपस्या करके अनेक विद्यायें , ध्यान , ज्योतिष ,आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया और मानवजन का कल्याण किया। महाराष्ट्र में तप के बल पर केसर की बरसात कराई थी। गुरदेव ने वि. स. २०२० तक अणुव्रत की उसके बाद आध्यात्मिक धर्म की धूम मच गयी गुरुदेव ने " सत्यम शिवम् सुंदरम " के उद्देश्य की कहानी को साकार करने के लिए और विश्व में मैत्री सदभावना का विस्तार मानव सेवा का कार्य शुरू किये। मानवता की ज्योति प्रकट करके सारे संसार में प्रकाश फैलाया जैसे फूल खिलता है तब वह दूर- दूर तक अपनी सौरभ फैला कर वातावरण महका देता है मुखरित कर देता है | फूल भवरों को निमंत्रण देने नहीं जाता किन्तु उसकी सुगंध और मिठास को लेने वह स्वयं दौड़ पड़ते हैं। अपना माधुर्य और सौरभ दुसरो को देने में ही फूल अपना श्रेय समझता है।

उसी उद्देश्य को जानकर गुरुदेव संसार में विश्व मैत्री, सदभावना, मानवकल्याण ,भारतीय संस्कृति , भारतीय ज्योतिष , आयुर्वेदिक आदि पर विद्या मंत्र का चमत्कारिक रूप से प्रदर्शन करके देश व विदेशो में मानव सेवा करके व असाध्य रोगों (कैंसर,गठिया ,दमा, शुगर ) आदि की निशुल्क चिकित्सा की तथा भारतीय संस्कृति और सदभावना का प्रचार-प्रसार किया था। गुरुदेव ने १९६७ में "एक विश्व सदभावना परिषद् " संस्था की स्थापना की थी। गुरुदेव ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के अपने देश भारत के आलावा विदेशो सिंगापुर ,नेपाल ,थाईलैंड, बैंकॉक , मलेशिया , कोलोमपुर , कैलिफोर्निया ,मैरीलैंड , न्यूयोर्क ,हांगकांग ,जापान ,लॉस-एंजेल्स, सनफ्रान्सिस्को, मयामी , वाशिंगटन , शिकागो ,कनाडा ,नाइग्रोफॉल , टोरंटो,लंदन, आदि देशो की यात्रा करके मानव कल्याण सदभावना , विश्वमैत्री का प्रचार-प्रसार किया। गुरूदेव ऐसे संत जो मुस्लिम देशो मे संत के रूप मे दुबई,आबुधाबी,शारजाह,मस्कट,यु.ए.ई. वहा पर भारतीय संस्कृति का तथा सनातन धर्म का प्रचार किया। आबुधाबी मे हर शुक्रवार को किसी एक के घर मे सत्संग भजन इत्यादि होता है।
आचार्य जी "HMDS" होम्योपैथिक "BHMS"आयुर्वेदिक दवाईयो से मानव जन का चमत्कारी रुप से लोगो को ठीक किया था।

कनाडा मे भारतीय योगी का चमत्कार

४ अप्रेल १९८३ मे कनाडा की एक लेडी जीन मेटकाफ को २५ साल से सभी वस्तुओ, आदमी से एलर्जी थी वह अकेले एक शीशे के कमरे में रहती थी, डॉक्टर इलाज करके थक गए थे। रोज़ एक फैमिली डॉक्टर कुछ दवाई आदी देकर जाता था। गुरुदेव ने जब कनाडा के " द बिग स्टैंडर्ड" अखबार मे पढा तब गुरुदेव ने अखबार संवाददाता उग रानसन फोन करके उस महिला की जानकर लिये। अपने आने का उद्देश्य बताते हुये उन्होने कहा की वह उस माहिला का इलाज करना चाहते है। उग रानसन ने आश्चर्य से स्वामी जी को उपर से नीचे तक निहारने के बाद अंग्रेजी मे कहा "उस महिला का इलाज नही सकता" कनाडा के बडे-बडे डॉक्टर उसका इलाज कर चुके है लेकिन कोई फायदा नही हुआ। आचार्य श्री जी ने कहा "आप मुझे एक बार उसके पास ले चलिये मेरा दावा है बीमारी चाहे जैसी भी हो मै उसे ठीक कर दुंगा" उग रानसन कुछ पल तक मौन रहा फिर बोला वह किसी से मिलती नही है। आजकल वह शीशे के केबिन मे बंद है। उसे अखबार , टेलीविजन,परफ्युम,कपडे,फर्नीचर व हर खाने-पीने वाली चीज से एलर्जी है। उक्त चीजो के सम्पर्क मे आते ही किट्स पडने लगते है। गुरूदेव ने कहा मै उसे एक सप्ताह मे ठीक कर दुंगा।मै आपको वही ले चलता हू उस महिला का डाक्टर भी हम लोगो के साथ रहेगा। आचर्य पुष्पराज ने स्वीकृति से सिर हिला दिया।


आचार्य जी अपनी सहयोगी उषा आहुजा व उगरानसन के साथ लेडी का डॉक्टर सभी एलर्जी से शिकार उस महिला के पास जा पहुचे जब वे लोग मेटकाफ के घर पहुचे तो वहा सन्नाटा छाया हुआ था। मुख्य द्वार पार करके अंदर पहुचने पर एक लोगो ने देखा लगभग 8 फीट के शिशे के केबिन मे आराम कुर्सी पर मेटकाफ अध लेटी सी छत की ओर निहार रही थी। कदमो की आहट पाकर मेटकाफ ने थोडा सा चेहरा घुमाया, फिर यथावत हो गई। उग रानसन ने केबिन का दरवाजा खट्खटाया।इस पर भी मेटकाफ ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही की। कुछ देर बाद उगरानसन ने फ़िर दरवाजा खट्खटाया मेटकाफ ने उनकी तरफ देखा। उस समय आचार्य पुष्पराज जी अपनी आंखें बन्द किये हुये ध्यनावस्था मे खड़े हुये। वह होठो ही होठो मे कुछ बुदबुदा रहे थे। अचानक मेटकाफ उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी।अगले ही क्षण उसने दरवाजा खोल दिया । दरवाजा खुलते ही सभी लोगो ने अपने जूते-मोजे उतारे और अंदर की ओर बढने लगे। आचार्य जी दोनो हथेलियो को मुह पर रखे हुये कुछ बुदबुदा रहे थे। सबने देखा की मेटकाफ को तनिक भी घबराहट नही हो रही थी। कहाँ एक भी व्यक्ति को अपने पास भटकने नही देती थी

और आज वही ३-३ व्यक्तियो का स्वागत कर रही हैं। आचार्य जी ने मंत्र पढते हुये कुछ देर बाद उसके सिर पर हाथ फेरा और ध्यनावस्था मे बैठ गए। उन्होने थोडी देर बाद थोड़ी सी स्वर्ण भस्म मेटकाफ के हाथ पर रखी । डॉक्टर यह सोचकर हैरान था कि आचार्य कोई इलाज भी नही कर रहा है । न उसके गले मे स्टेपिस्कोप है न कोई मरीज कि नब्ज देखी न कोई दवा दी इलाज करने का यह कौन सा तरीका है । साथ ही वह उस बात से आश्चर्यचकित भी था की मेटकाफ इतनी भीड़ के बावजूद सामान्य बनी रही । जबकि वह एक व्यक्ति की उपस्थिति को भी बर्दास्त नहीं कर पाती थी । यह अवश्य ही आचार्य जी का चमत्कार था । आचार्य पुष्पराज जी की सहायिका उषा आहुजा अब मेटकाफ के हाथो को सह्लाने लगी थीं मेटकाफ के चेहरे पर कृतज्ञता के भाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते थे । कुछ देर तक हाथो को सह्लाने व उनका अध्ध्यन करने के साथ – साथ वह उससे बाते भी करने लगी थी । मेटकाफ के चेहरे पर हास्य की रेखाये उभरने लगी थी । लगभग २० मिनट तक वहाँ रहने के बाद सभी लोग केबिन से बाहर निकल आये । मेटकाफ सभी को धन्यवाद देने दरवाजे तक आयी थी ।

रास्ते मे पुष्पराज ने डॉक्टर को बताया कि उनका इलाज़ एक सप्ताह चलेगा । प्रतिदिन वह रोज इसी समय आकर उसका निरीक्षण करेंगे । उन्होने डॉक्टर को यह बताया कि मेटकाफ ५३ वर्ष लगभग है। वह पिछले २५ वर्षों से एलर्जी की शिकार है । बीमारी का कारण बताते हुये उन्होने कहा कि बचपन मे अपने माता-पिता की ओर से उपेक्षित रहने के कारण बीमारी की नीव पड़ीं थी । उसके बाद ज्यों – ज्यों युवावस्था की ओर बढ़ती गई । २५-२६ की उम्र तक आते-आते वह पूरी तरह एलर्जी से ग्रस्त हो गई । डॉक्टर उनकी बात सुनकर आश्चर्यचकित था । क्योकि आचार्य जी की उस महिला से पहली मुलाकात थी और उस मुलाकात मे उन्होने इतनी सारी जानकारी प्राप्त कर ली थी । डॉक्टरो ने कभी भी उसकी बीमारी का कारण खोजने की चेष्टा नही की थी । बल्कि दिन पर दिन महँगी से महँगी दवाये व इंजेक्सन उसको देते रह्ते थे। मेटकाफ को अब दवा के नाम से चिढ़ होने लगी थी । इसलिये उसने अपने आपको शीशे के केबिन मे बंद कर लिया था । लेकिन आचार्य जी से मिल कर उसे बडी़ शान्ति मिली थी। यही कारण था कि उसने कोई विरोध नही किया था। अगले दिन आचार्य जी निर्धारित समय पर मेटकाफ के पास जा पहुंचे । उनके साथ डॉक्टर भी नही था। उग रानसन व उषा आहुजा के साथ जब वह मेटकाफ के पास पहुंचे तो वह आराम कर रही थी । आचार्य जी के आने पर उसने उनका अभिवादन किया और उन्हे सादर बैठाया ।

आचार्य जी ने उसकी नब्ज देखी । तत्पशात एक चुटकी स्वर्ण भस्म खाते ही मेटकाफ मे स्फुर्ति आ गयी वह अत्यन्त उत्साह से बातचीत करने लगी । थोड़ी देर बाद आचर्य जी मेटकाफ से बोले “क्या आप हमे कॉफी पिलाने का कष्ट करेंगी ” उग रानसन आचार्य जी कि बात पर चौका उसने कहा “ आचार्य जी, यह आप क्या कह रहे है ? क्या आपको मालूम नही है कि इसे कॉफी से एलर्जी है? घबराइये मत! कुछ नही होगा। मेटकाफ हम सबको कॉफी पिलायेंगी “ आचार्य जी ने पूर्ण विश्वास के साथ कहा। मेटकाफ मुस्कुराती हुयीं उठी और किचन कि ओर बढ़ गयी। उग रानसन आंखे फाडे देख रहा था कि जो महिला चाय, कॉफी के नाम से भी भड़क उठती थी आज वही सबके लिये कॉफी बनाने जा रही थी। आचार्य पुष्पराज जी एक सप्ताह तक स्मिथफाल्स मे रहे । उस बीच वह प्रतिदिन मेटकाफ को देखने जाते रहे। कुछ औषधिया भी उन्होने खांने के लिये भी उसे दी थी। मेटकाफ कि हालत दिन पर दिन सुधरती जा रही थीं । उग रानसन उस रोमांचक घटना का विवरण ६ अप्रैल के अंक मे विस्तार मे लिखा था कि “ सफेद कपड़ों मे एक चमत्कारी व्यक्ति का चम्त्कार ” साथ मे आचार्य पुष्पराज व उषा आहुजा और मिसेज मेटकाफ का फोटो भी प्रकाशित किया । समाचार प्रकाशित होते ही आचार्य पुष्पराज के पास कनाडा के निवासियों बधाइयों का ताता लग गया। बड़े – बड़े डॉक्टरो ने आचार्य जी की प्रशंसा की। इसी प्रकार लंदन मे भी रुग्ना बैन को गठिया कि वजह से हाथ पैर से कम नहीं कर पा रही थी। उनका भी इलाज़ करके उनको भी स्वस्थ किया । हाथ देख कर जन्म-तिथि के आधार पर बडी से बडी बीमारी का इलाज़ करने वाले आचार्य पुष्पराज “एक विश्व सद्भावना परिषद् ” के संस्थापक थे।